घरमा आमा-बाबुको अर्कै कुरा।
मनकी प्यारी,सानुको अर्कै कुरा।।
मनकी प्यारी,सानुको अर्कै कुरा।।
भएर ऋणी, जीवन बाँच्न गाह्रो,
नतिर्दा ऋण,साहुको अर्कै कुरा।।
नतिर्दा ऋण,साहुको अर्कै कुरा।।
भन्छिन् उनी, मूग्लान जाऊ बरु,
मान्दैन मन,आफूको अर्कै कुरा।।
यो मन संग, बहस चल्दा मेरो,
गह भित्रको,आँशुको अर्कै कुरा।।
गह भित्रको,आँशुको अर्कै कुरा।।
No comments:
Post a Comment